लेखनी कहानी -24-Oct-2023
चांद को बांहों में देखकर मचल उठा है मन कमल से अधरों को छूने को लालायित गगन रेशमी जुल्फों की रात में हसीं लगता है चांद थरथरी सी उठ रही है , कम्पित है तन बदन
ख्वाब आंखों में बसकर मुस्कुराहटों में खिले जमीं गा रही है तराना, दो दिल क्या खूब मिले तारों ने बारात सजा के खुशी का इजहार किया हुस्न ओ जवानी से शुरू हुए इश्क के सिलसिले
इश्क को हुस्न की पनाहों में जगह मिल गई गुमसुम सी जिंदगी में गुल ए बहार खिल गई कंपकंपाते लबों का खामोश पैगाम पढ़ के हरि बेपनाह हुस्न पे ये कमबख्त तबीयत मचल गई
श्री हरि 24.10.23
Mohammed urooj khan
25-Oct-2023 12:26 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
24-Oct-2023 01:36 PM
👏👌
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